भारतीय राजनीति
(राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां तथा भारत में राष्ट्र निर्माण)
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(जातिवाद, क्षेत्रवाद तथा नवीन सामाजिक आंदोलन)
राष्ट्रीय एकीकरण भिन्नताओं के बीच भी समाज के लोगों में ' एक होने' की द्रढ भावना की अभिव्यक्ति है, ताकि उनमें राष्ट्रीयता की भावना पनप सकें| भारतीय संविधान तो पंथनिरपेक्ष है लेकिन भारतीय समाज पंथनिरपेक्ष नहीं बन पाया इसलिए यहां पर सांप्रदायिकता की समस्या पाई जाती है| यह वह स्थिति है जिसमें एक धर्म के लोग दूसरे धर्म से अलग हैं और एक दूसरे के विरोधी हैं|
माइनर विनर के अनुसार- भारत में राज्य- निर्माण राष्ट्र निर्माण की समस्या को लेकर विरोधाभास पाया जाता है| सामाजिक आर्थिक लाभो के लिए धर्म का प्रयोग सांप्रदायिक राजनीति कहलाती है| जो राष्ट्र निर्माण में बाधक है, यह भारतीय राष्ट्रीय एकता व अखंडता को चोट पहुंच आती है|
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां-
जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, बेरोजगारी, गरीबी, हिंसात्मक आंदोलन व राजनीति आदि
राष्ट्र निर्माण की बाधाओं के निराकरण के उपाय-
1.लोगों में उच्च आदर्शों और उच्च भावनाओं का प्रसार करने के लिए देश में गरीबी और बेकारी को मिटाया जाए|
2.सामाजिक न्याय की स्थापना की दिशा में ठोस कदम उठाएं जाए|
3. नागरिकों में राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करनी आवश्यक है|
4. विभिन्न प्रांतों के लोगों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो|
5. धार्मिक नाम पर चलने वाली संस्थाओं पर रोक लगाई जाए|
6.सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध सशक्त जनमत जागृत किया जाए|
भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया के निर्धारक-
1. जातिवाद- भारत की सामाजिक व्यवस्था जाति प्रथा के इर्द-गिर्द घूमती है| भारत के अनेक भागों में जातीय श्रेष्ठता को मान्यता दी जाती है इसी कारण जाति एक स्वतंत्र पहचान के रूप में जीवित है| जाति का अंग्रेजी शब्द caste पुर्तगाली शब्द casta से बना है, जिसका अर्थ प्रजाति, जन्म या भेद है|
भारतीय राजनीति में जाति के प्रभाव को देखा जा सकता है, एक जाति अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए राजनीति का किस प्रकार प्रयोग करती है इस प्रक्रिया को जाति का राजनीतिकरण कहा जाता है| श्रीनिवासन का कथन है कि " जाति निसंदेह अखिल भारतीय प्रवृत्ति है |"
इसी प्रकार दलों के निर्माण व पहचान का आधार जाति है,ऐसी दल विशेष जाति के लिए ही कार्य करते हैं|
चुनाव में भी उम्मीदवार का चयन जाति के आधार पर किया जाता है तथा चुनाव में प्रचार का आधार जाति है| संसद में भी जाति के आधार पर गुटबाजी हो जाती है, इसीलिए जाति के कारण हिंसा को बढ़ावा मिलता है|
भारतीय राजनीति में जाति की नकारात्मक भूमिका अधिक रही है और सकारात्मक कम रही है| जैसे -सकारात्मक रूप से देखें तो जाति के कारण मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई है, जाति आज शैक्षणिक उत्थान का भी कार्य कर रही है| जाति दबाव समूह के रूप में भी कार्य करती है| इस प्रकार जाति ने न केवल राजनीति को प्रभावित किया है बल्कि स्वयं वह भी राजनीति से प्रभावित होती है| अनेक जातियों ने अपनी दशा सुधारने के लिए राजनीति का प्रयोग किया| महाराष्ट्र के महर, आंध्र प्रदेश में रेड्डी और कामा, तमिलनाडु के नाडार आदि जातियों ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए राजनीति का प्रयोग किया|
कुछ विद्वान राजनीति में जाति की भूमिका पर शोक एवं चिंता व्यक्त करते हैं और यह कहते हैं कि राजनीति जाति और जातिवाद से मुक्त होनी चाहिए तथा कुछ विद्वान कहते हैं कि जाति को किसी भी राजनीतिक प्रदूषण से बचाना चाहिए|
2.क्षेत्रवाद- यह भारतीय राजनीति का प्रमुख निर्धारक तत्व है| एक क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले लोगों को अपने क्षेत्र के प्रति विशेष लगाव एवं अपनेपन की भावना है,अपने क्षेत्र के प्रति भक्ति या विशेष आकर्षण दिखाना| इस दृष्टि से इसका ध्येय संकुचित क्षेत्रीय स्वार्थों की पूर्ति होता है| अर्थात जब हम राष्ट्रीय हितों की तुलना में क्षेत्रिय हितों पर बल देते हैं तो उसे क्षेत्रवाद कहते हैं| यह भारतीय राष्ट्रीय एकता व अखंडता को समाप्त कर सकती है|
भारतीय राजनीति में क्षेत्रीयता के रूप-
1.भारतीय संघ से पृथक होने की मांग ( तमिल भाषा भाषियों द्वारा भारत से प्रथकता की मांग, पंजाब में खालिस्तान की मांग आदि)
2. पृथक राज्यों की मांग ( भाषा, धर्म, जाति आदि के आधार पर पृथक राज्य की मांग)
3. क्षेत्रीय भाषायी विवाद
4. क्षेत्रीयतावाद और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का विकास- सत्ता में अपना दबदबा बनाने के लिए कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का भी निर्माण हुआ है जैसे अकाली दल, डीएमके आदि|
रोकने के उपाय-
1.भाषा ही विवादों का तुरंत समाधान किया जाए|
2. अराजक शक्तियों का कठोरता से दमन किया जाए|
3. देश के विभिन्न भागों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो|
4. शिक्षा में भारतीयता का समावेश हो|
5. सभी क्षेत्रों के लोगों को बिना किसी भेदभाव के समान आर्थिक सुविधाएं प्रदान की जाए ताकि उनमें असंतोष ने पनपे|
3. नवीन सामाजिक आंदोलन- रूडोल्फ हैबरली- सभी सामाजिक आंदोलनों के परिणाम राजनीतिक ही होते हैं| सामाजिक आंदोलन के घटक है -उद्देश्य, विचारधारा, कार्यक्रम, नेतृत्व और संगठन|
क्रांतिकारी सामाजिक आंदोलन - सामाजिक संबंधों के आमूल परिवर्तन का प्रयास करते हैं प्रायः राज्य सत्ता पर अधिकार के रूप में|
सुधारवादी सामाजिक आंदोलन- यह आंदोलन संपूर्ण समाज में सीमित परिवर्तन से संबंधित होते हैं जैसे पिछड़ा वर्ग आंदोलन|
इस प्रकार वे आंदोलन जो मुख्य तौर पर राज्य सत्ता पर और भागीदारों की वर्ग चेतना पर ध्यान केंद्रित करते हैं, पुराने सामाजिक आंदोलन कहलाते हैं| नए सामाजिक आंदोलन वर्ग आधारित नहीं है| वे बहूवर्गीय हैं| नये सामाजिक आंदोलन किसी एक वर्ग अथवा समूह के हित से नहीं जुड़े हैं, वे सभी की भलाई से जुड़े हैं|
भारत के प्रमुख नवीन सामाजिक आंदोलन-
दलित आंदोलन-अंबेडकर ने अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ की स्थापना की| इसके बाद भारतीय रिपब्लिकन पार्टी की स्थापना हुई| 1972 में मुंबई में दलित पैंथर्स की स्थापना हुई तथा 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना हुई|
पिछड़ा वर्ग आंदोलन- इस आंदोलन का सिद्धांत था -समानता| संविधान सभा में पिछड़े वर्गों की आरक्षण की मांग उठाई गई थी तथा पिछड़े वर्ग को आरक्षण का समर्थन मंडल आयोग ने भी किया|
जनजातिय आंदोलन ( भाषा, धर्म और भौगोलिक स्थिति के आधार पर) , नारी आंदोलन( महिलाओं से संबंधित कई मुद्दे जैसे अनेक संगठन बने- अखिल भारतीय महिला कॉन्फ्रेंस, विमेंस इंडिया एसोसिएशन आदि), क्रषक आंदोलन( उत्तर प्रदेश में अवध किसान आंदोलन, गुजरात में खेड़ा आंदोलन, बिहार में चंपारण किसान आंदोलन आदि), श्रमिक आंदोलन( रेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना, टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन की स्थापना, राष्ट्रीय श्रमजीवी महासंघ नफ्टुआदि) हुए|
महत्वपूर्ण प्रश्न
राष्ट्रीय एकीकरण का आशय क्या है?
अ राष्ट्र के प्रति नागरिकों की निष्ठा निर्मित करना
ब नागरिकों की निष्ठा विदेशियों के प्रति बनाना
स नागरिक मे अपने धर्म की भावना भरना
द अलगाव की भावना
2. निम्न में से किन रियासतों का विलय भारतीय संघ में सुगमता से नहीं हुआ?
अ जम्मू एवं कश्मीर
ब हैदराबाद
स जूनागढ
द उपरोक्त सभी
3. भारतीय संघ का 29 वां राज्य कौन सा है?
अ तेलंगाना
ब छत्तीसगढ़
स उत्तराखंड
द झारखंड
4. राजनीतिक दल के प्रमुख तत्व है-
अ संगठन
ब सामान्य सिद्धांतों में एक एकमत
स सरकार का निर्माण
द उक्त सभी
5. वर्तमान समय में देश की राजनीति को दिशा प्रदान करने वाले प्रमुख तत्व है?
अ धर्म
ब जाति
स आरक्षण
द उक्त तीनों
6. जल्लीकट्टू खेल को लेकर किस राज्य की राजनीति गर्म में रहती है?
अ तमिलनाडु
ब केरल
स आंध्र प्रदेश
द कर्नाटक
7. भारतीय लोकतंत्र का आशावादी पक्ष है-
अ सत्ता का विकेंद्रीकरण
ब शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता का परिवर्तन
स आत्म सुधार वादी प्रवृत्ति होना
द उपरोक्त सभी
8. लोकतंत्र की सफलता की शर्त है-
अ आर्थिक समानता
ब सामाजिक न्याय
स राजनीतिक स्वतंत्रता
द उपरोक्त सभी
9. आंध्र प्रदेश की राजनीति में किस जाति की भूमिका प्रभावी है?
अ पाटीदार और क्षत्रिय की
ब राजपूत और ब्राह्मण की
स ईसाई और मुसलमान की
द कम्मा और रेड्डी की
10. अपने क्षेत्र को देश की तुलना में अधिक अपना माना क्षेत्रवाद का कौन सा भाग है-
अ सकारात्मक
ब नकारात्मक
स भावविहिन
द कोई नहीं
11. क्षेत्रीयता की भावना विकसित करने में सहायक है-
अ जलवायु, भौगोलिक समरूपता
ब भाषा, संस्कृति, रीति रिवाज संबंधित एकरुकता
स क्षेत्र विशेष को राष्ट्रीयता से अधिक महत्व देना
द उपरोक्त सभी
12. चिपको आंदोलन की शुरुआत किस राज्य से हुई?
अ उत्तराखंड
ब झारखंड
स छत्तीसगढ़
द मध्य प्रदेश
13. नर्मदा बचाओ आंदोलन के प्रमुख नेता कौन है?
अ मेघा पाटकर
ब सुंदरलाल बहुगुणा
स शबाना आज़मी
द बाबा आमटे
14. तेलंगाना आंदोलन कहां चलाया गया?
अ हैदराबाद
ब कर्नाटक
स तमिलनाडु
द मुंबई
15. तिभागा आंदोलन किस राज्य में चला-
अ महाराष्ट्र
ब बंगाल
स राजस्थान
द उत्तर प्रदेश
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(राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां तथा भारत में राष्ट्र निर्माण)
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(जातिवाद, क्षेत्रवाद तथा नवीन सामाजिक आंदोलन)
राष्ट्रीय एकीकरण भिन्नताओं के बीच भी समाज के लोगों में ' एक होने' की द्रढ भावना की अभिव्यक्ति है, ताकि उनमें राष्ट्रीयता की भावना पनप सकें| भारतीय संविधान तो पंथनिरपेक्ष है लेकिन भारतीय समाज पंथनिरपेक्ष नहीं बन पाया इसलिए यहां पर सांप्रदायिकता की समस्या पाई जाती है| यह वह स्थिति है जिसमें एक धर्म के लोग दूसरे धर्म से अलग हैं और एक दूसरे के विरोधी हैं|
माइनर विनर के अनुसार- भारत में राज्य- निर्माण राष्ट्र निर्माण की समस्या को लेकर विरोधाभास पाया जाता है| सामाजिक आर्थिक लाभो के लिए धर्म का प्रयोग सांप्रदायिक राजनीति कहलाती है| जो राष्ट्र निर्माण में बाधक है, यह भारतीय राष्ट्रीय एकता व अखंडता को चोट पहुंच आती है|
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां-
जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, बेरोजगारी, गरीबी, हिंसात्मक आंदोलन व राजनीति आदि
राष्ट्र निर्माण की बाधाओं के निराकरण के उपाय-
1.लोगों में उच्च आदर्शों और उच्च भावनाओं का प्रसार करने के लिए देश में गरीबी और बेकारी को मिटाया जाए|
2.सामाजिक न्याय की स्थापना की दिशा में ठोस कदम उठाएं जाए|
3. नागरिकों में राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करनी आवश्यक है|
4. विभिन्न प्रांतों के लोगों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो|
5. धार्मिक नाम पर चलने वाली संस्थाओं पर रोक लगाई जाए|
6.सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध सशक्त जनमत जागृत किया जाए|
भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया के निर्धारक-
1. जातिवाद- भारत की सामाजिक व्यवस्था जाति प्रथा के इर्द-गिर्द घूमती है| भारत के अनेक भागों में जातीय श्रेष्ठता को मान्यता दी जाती है इसी कारण जाति एक स्वतंत्र पहचान के रूप में जीवित है| जाति का अंग्रेजी शब्द caste पुर्तगाली शब्द casta से बना है, जिसका अर्थ प्रजाति, जन्म या भेद है|
भारतीय राजनीति में जाति के प्रभाव को देखा जा सकता है, एक जाति अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए राजनीति का किस प्रकार प्रयोग करती है इस प्रक्रिया को जाति का राजनीतिकरण कहा जाता है| श्रीनिवासन का कथन है कि " जाति निसंदेह अखिल भारतीय प्रवृत्ति है |"
इसी प्रकार दलों के निर्माण व पहचान का आधार जाति है,ऐसी दल विशेष जाति के लिए ही कार्य करते हैं|
चुनाव में भी उम्मीदवार का चयन जाति के आधार पर किया जाता है तथा चुनाव में प्रचार का आधार जाति है| संसद में भी जाति के आधार पर गुटबाजी हो जाती है, इसीलिए जाति के कारण हिंसा को बढ़ावा मिलता है|
भारतीय राजनीति में जाति की नकारात्मक भूमिका अधिक रही है और सकारात्मक कम रही है| जैसे -सकारात्मक रूप से देखें तो जाति के कारण मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई है, जाति आज शैक्षणिक उत्थान का भी कार्य कर रही है| जाति दबाव समूह के रूप में भी कार्य करती है| इस प्रकार जाति ने न केवल राजनीति को प्रभावित किया है बल्कि स्वयं वह भी राजनीति से प्रभावित होती है| अनेक जातियों ने अपनी दशा सुधारने के लिए राजनीति का प्रयोग किया| महाराष्ट्र के महर, आंध्र प्रदेश में रेड्डी और कामा, तमिलनाडु के नाडार आदि जातियों ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए राजनीति का प्रयोग किया|
कुछ विद्वान राजनीति में जाति की भूमिका पर शोक एवं चिंता व्यक्त करते हैं और यह कहते हैं कि राजनीति जाति और जातिवाद से मुक्त होनी चाहिए तथा कुछ विद्वान कहते हैं कि जाति को किसी भी राजनीतिक प्रदूषण से बचाना चाहिए|
2.क्षेत्रवाद- यह भारतीय राजनीति का प्रमुख निर्धारक तत्व है| एक क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले लोगों को अपने क्षेत्र के प्रति विशेष लगाव एवं अपनेपन की भावना है,अपने क्षेत्र के प्रति भक्ति या विशेष आकर्षण दिखाना| इस दृष्टि से इसका ध्येय संकुचित क्षेत्रीय स्वार्थों की पूर्ति होता है| अर्थात जब हम राष्ट्रीय हितों की तुलना में क्षेत्रिय हितों पर बल देते हैं तो उसे क्षेत्रवाद कहते हैं| यह भारतीय राष्ट्रीय एकता व अखंडता को समाप्त कर सकती है|
भारतीय राजनीति में क्षेत्रीयता के रूप-
1.भारतीय संघ से पृथक होने की मांग ( तमिल भाषा भाषियों द्वारा भारत से प्रथकता की मांग, पंजाब में खालिस्तान की मांग आदि)
2. पृथक राज्यों की मांग ( भाषा, धर्म, जाति आदि के आधार पर पृथक राज्य की मांग)
3. क्षेत्रीय भाषायी विवाद
4. क्षेत्रीयतावाद और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का विकास- सत्ता में अपना दबदबा बनाने के लिए कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का भी निर्माण हुआ है जैसे अकाली दल, डीएमके आदि|
रोकने के उपाय-
1.भाषा ही विवादों का तुरंत समाधान किया जाए|
2. अराजक शक्तियों का कठोरता से दमन किया जाए|
3. देश के विभिन्न भागों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो|
4. शिक्षा में भारतीयता का समावेश हो|
5. सभी क्षेत्रों के लोगों को बिना किसी भेदभाव के समान आर्थिक सुविधाएं प्रदान की जाए ताकि उनमें असंतोष ने पनपे|
3. नवीन सामाजिक आंदोलन- रूडोल्फ हैबरली- सभी सामाजिक आंदोलनों के परिणाम राजनीतिक ही होते हैं| सामाजिक आंदोलन के घटक है -उद्देश्य, विचारधारा, कार्यक्रम, नेतृत्व और संगठन|
क्रांतिकारी सामाजिक आंदोलन - सामाजिक संबंधों के आमूल परिवर्तन का प्रयास करते हैं प्रायः राज्य सत्ता पर अधिकार के रूप में|
सुधारवादी सामाजिक आंदोलन- यह आंदोलन संपूर्ण समाज में सीमित परिवर्तन से संबंधित होते हैं जैसे पिछड़ा वर्ग आंदोलन|
इस प्रकार वे आंदोलन जो मुख्य तौर पर राज्य सत्ता पर और भागीदारों की वर्ग चेतना पर ध्यान केंद्रित करते हैं, पुराने सामाजिक आंदोलन कहलाते हैं| नए सामाजिक आंदोलन वर्ग आधारित नहीं है| वे बहूवर्गीय हैं| नये सामाजिक आंदोलन किसी एक वर्ग अथवा समूह के हित से नहीं जुड़े हैं, वे सभी की भलाई से जुड़े हैं|
भारत के प्रमुख नवीन सामाजिक आंदोलन-
दलित आंदोलन-अंबेडकर ने अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ की स्थापना की| इसके बाद भारतीय रिपब्लिकन पार्टी की स्थापना हुई| 1972 में मुंबई में दलित पैंथर्स की स्थापना हुई तथा 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना हुई|
पिछड़ा वर्ग आंदोलन- इस आंदोलन का सिद्धांत था -समानता| संविधान सभा में पिछड़े वर्गों की आरक्षण की मांग उठाई गई थी तथा पिछड़े वर्ग को आरक्षण का समर्थन मंडल आयोग ने भी किया|
जनजातिय आंदोलन ( भाषा, धर्म और भौगोलिक स्थिति के आधार पर) , नारी आंदोलन( महिलाओं से संबंधित कई मुद्दे जैसे अनेक संगठन बने- अखिल भारतीय महिला कॉन्फ्रेंस, विमेंस इंडिया एसोसिएशन आदि), क्रषक आंदोलन( उत्तर प्रदेश में अवध किसान आंदोलन, गुजरात में खेड़ा आंदोलन, बिहार में चंपारण किसान आंदोलन आदि), श्रमिक आंदोलन( रेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना, टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन की स्थापना, राष्ट्रीय श्रमजीवी महासंघ नफ्टुआदि) हुए|
महत्वपूर्ण प्रश्न
राष्ट्रीय एकीकरण का आशय क्या है?
अ राष्ट्र के प्रति नागरिकों की निष्ठा निर्मित करना
ब नागरिकों की निष्ठा विदेशियों के प्रति बनाना
स नागरिक मे अपने धर्म की भावना भरना
द अलगाव की भावना
2. निम्न में से किन रियासतों का विलय भारतीय संघ में सुगमता से नहीं हुआ?
अ जम्मू एवं कश्मीर
ब हैदराबाद
स जूनागढ
द उपरोक्त सभी
3. भारतीय संघ का 29 वां राज्य कौन सा है?
अ तेलंगाना
ब छत्तीसगढ़
स उत्तराखंड
द झारखंड
4. राजनीतिक दल के प्रमुख तत्व है-
अ संगठन
ब सामान्य सिद्धांतों में एक एकमत
स सरकार का निर्माण
द उक्त सभी
5. वर्तमान समय में देश की राजनीति को दिशा प्रदान करने वाले प्रमुख तत्व है?
अ धर्म
ब जाति
स आरक्षण
द उक्त तीनों
6. जल्लीकट्टू खेल को लेकर किस राज्य की राजनीति गर्म में रहती है?
अ तमिलनाडु
ब केरल
स आंध्र प्रदेश
द कर्नाटक
7. भारतीय लोकतंत्र का आशावादी पक्ष है-
अ सत्ता का विकेंद्रीकरण
ब शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता का परिवर्तन
स आत्म सुधार वादी प्रवृत्ति होना
द उपरोक्त सभी
8. लोकतंत्र की सफलता की शर्त है-
अ आर्थिक समानता
ब सामाजिक न्याय
स राजनीतिक स्वतंत्रता
द उपरोक्त सभी
9. आंध्र प्रदेश की राजनीति में किस जाति की भूमिका प्रभावी है?
अ पाटीदार और क्षत्रिय की
ब राजपूत और ब्राह्मण की
स ईसाई और मुसलमान की
द कम्मा और रेड्डी की
10. अपने क्षेत्र को देश की तुलना में अधिक अपना माना क्षेत्रवाद का कौन सा भाग है-
अ सकारात्मक
ब नकारात्मक
स भावविहिन
द कोई नहीं
11. क्षेत्रीयता की भावना विकसित करने में सहायक है-
अ जलवायु, भौगोलिक समरूपता
ब भाषा, संस्कृति, रीति रिवाज संबंधित एकरुकता
स क्षेत्र विशेष को राष्ट्रीयता से अधिक महत्व देना
द उपरोक्त सभी
12. चिपको आंदोलन की शुरुआत किस राज्य से हुई?
अ उत्तराखंड
ब झारखंड
स छत्तीसगढ़
द मध्य प्रदेश
13. नर्मदा बचाओ आंदोलन के प्रमुख नेता कौन है?
अ मेघा पाटकर
ब सुंदरलाल बहुगुणा
स शबाना आज़मी
द बाबा आमटे
14. तेलंगाना आंदोलन कहां चलाया गया?
अ हैदराबाद
ब कर्नाटक
स तमिलनाडु
द मुंबई
15. तिभागा आंदोलन किस राज्य में चला-
अ महाराष्ट्र
ब बंगाल
स राजस्थान
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